रमज़ान का महीना और ईद की खुशियाँ मुस्लिम समाज में क्यूं है ख़ास,आइए जानते रमज़ान और ईद के बारे में

रमज़ान का महीना और ईद की खुशियाँ मुस्लिम समाज में क्यूं है ख़ास,आइए जानते रमज़ान और ईद के बारे में



रमजान के महीने में इस्लाम धर्म का अनुसरण करने वाले मुस्लिम धर्मावलंबी इस पूरे माह में रोजे रखते हैं और अपनी इबादतों में इजाफा करते हुए पूरे आलम के लिए दुआएं करते हैं। रमजान के तीस दिनों को 3 अलग-अलग अशरा (यानी दस दिन का एक अशरा) में डिवाइड किया गया। जिसमें 1 से 10 रमजान तक पहला अशरा जिसे रहमत (दया) कहा गया है। 11 से 20 रमजान तक दूसरा अशरा जिसे मगफिरत (बख़्शिश) वाला अशरा कहा गया है। तीसरा और आखिरी अशरा, 21 से 30 रमजान का होता है, जिसे जहन्नम की आग से निजात (मोक्ष) वाला अशरा कहा गया है।

रमजान का पहला अशरा रहमत

रमजान का पहला अशरा अल्लाह की रहमत (दया) का अशरा है। इसमें अल्लाह की विशेष कृपा और बरकतें उतरती हैं और रोजेदार को अल्लाह की विशेष रहमतों से नवाजा (कृपा) जाता है।

रमजान का दूसरा अशरा मगफिरत

रमजान का दूसरा अशरा मगफिरत का है। जो 11 से 20 रमजान तक होता है। इसमें अल्लाह से माफी मांगने का बेहतरीन समय है। यह अशरा पिछले गुनाहों से पाक साफ होने का मौका देता है।''

रमजान का तीसरा अशरा निजात

रमजान का तीसरा और आखिरी अशरा निजात (मोक्ष) का अशरा है। जो 21 से 30 तक होता है। यह सबसे अहम है। क्योंकि इसी अशरे में शबे कद्र की रात आती है। इस अशरे की इबादत एक हजार महीने की इबादत से बेहतर होती है।''

रमजान के तीसरे अशरे यानी आखिर 10 दिनों में एतकाफ की खास फजीलत है। एतकाफ इबादत की ऐसी विधि है जो अल्लाह और बंदों के बीच की दूरी को कम करता है और दोजख से निजात दिलाता है।


एतिकाफ क्या है ?

रमजान के आखिरी अशरे में कई मुस्लिम मर्द और औरतें एतकाफ में बैठकर मौला की इबादत करते हैं। सीधी जुबान में कहे तो दस दिन तक एकांत में बैठकर इबादत करनी है। न किसी से बात करनी है, न किसी को अपना चेहरा दिखाना है। बस दस दिन तक अल्लाह अल्लाह करना है। ऐसे बंदों पर अल्लाह की खुसूसी रहमत नाजिल होती है। एतकाफ के दौरान मर्द हजरात मस्जिद में जबकि औरतें घरों में एकांतवास करती है। वही पर खाना,पीना,सोना और इबादत की जाती है। मर्द मस्जिद में पर्दे में रहते हैं, जबकि औरतें घर पर ही एतकाफ का एहतिमाम करती है।

क्या है एतिकाफ का मकसद ?

एतिकाफ का मकसद यानी आखिरी अशरे में अल्लाह का कुर्ब हासिल करना। इसके लिए तन्हाई में रहना जरूरी है। क्योंकि जब बंदा अकेला होता है तो उसे केवल अल्लाह से लौ लगाना आसान रहता है। एतकाफ का सवाब बहुत ज्यादा होता है। एतिकाफ करने वाला बंदा जब 21 से 29 रमजान के बीच शब-ए-कदर की रात को जागता और इबादत करता है तो अल्लाह उसके सारे गुनाहों को माफ फरमा देते हैं। ईद का चांद नजर आते ही एतिकाफ समाप्त कर दिया जाता है।

एतकाफ से क्या मिलता है?

पैगंबर मुहम्मद ने फरमाया जो शख्स रमजान में 10 रोज का एतकाफ करे उसको दो हज और दो उमराह जैसा सवाब होगा। इसके अलावा एतकाफ करने वाला उन तमाम गुनाहों से रुका रहता है और उसको सवाब ऐसा मिलता है जैसे वो कोई तमाम नेकियां कर रहा हो। जब तक इंसान एतकाफ की हालत में होता है तो उसका एक-एक मिनट एक एक लम्हा इबादत में लिखा जाता है, उसका सोना उसका खाना-पीना और उसका उठना बैठना सब इबादत में शामिल होता है।


माह-ए-रमजान को इस्लाम (Islam) में बेहद पाक महीना माना गया है. कहा जाता है कि इसी महीने में शब-ए-कद्र में अल्लाह ने पवित्र धर्मग्रंथ कुरान को नाजिल किया था। रमजान के महीने (Month of Ramzan) को नेक कामों का महीना भी कहा जाता है, इसीलिए इसे मौसम-ए-बहार भी बुलाते हैं। इस दौरान मुसलमानों के लिए एक महीने तक रोजे रखना, रात में तरावीह की नमाज पढ़ना और कुरान (Quran) तिलावत करना जरूरी होता है। इसके अलावा जकात और फितरा का भी विशेष महत्व माना गया है। इस्लामी मान्यता है कि रमजान के महीने में किया गए एक नेक काम का भी कई गुना सवाब मिलता है। ये महीना खुद के सुधार का महीना माना गया है, जो हर मुस्लिम को संयम, प्रेम और भाईचारे की सीख देता है। जानिए रमजान के महीने को इतना पवित्र क्यों माना जाता है!

अल्लाह की रहमत का महीना

रमजान के महीने को अल्लाह की रहमतों का महीना माना गया है। इसलिए हर मुस्लिम इस माह में ज्यादा से ज्यादा समय अल्लाह की इबादत करता है। कहा जाता है कि इस माह में हर नेक काम का कई गुणा सवाब मिलता है। इस दौरान अल्लाह जन्नत के दरवाजे खोल देता है और बरकत की बारिश करता है। अल्लाह की रहमत पाने के लिए मुसलमान पूरे एक माह तक कठिन नियमों के साथ रोजे रखकर, नमाज पढ़कर और कुरान की तिलावत करके अल्लाह की इबादत करते हैं।

आत्ममंथन का महीना

रमजान का महीना आत्ममंथन का महीना माना गया है। ये हर मुसलमान को गुनाहों का प्रायश्चित करने का अवसर देता है। रमजान के महीने में रखा जाने वाला रोजा सिर्फ खाने पीने के ही नियमों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि इस दौरान किसी को गलत निगाह से देखना, किसी का दिल दुखाना, किसी की बुराई करना भी गुनाह माना गया है। इस बीच खानपान पर नियंत्रण के साथ व्यक्ति अपनी इन आदतों पर भी नियंत्रण करता है, जिससे उसकी भावनाएं शुद्ध होती हैं। रमजान के महीने में आत्ममंथन करके खुद के अंदर झांकने का प्रयास करना चाहिए और अपनी भूल को सुधारना चाहिए। इससे अल्लाह खुश होते हैं और रहमत और बरकत बरसाने के साथ तमाम गुनाहों को माफ कर देते हैं।




रमज़ान ईद (ईद-उल-फितर)

रमजान का पवित्र महीना पूरा होने के बाद दुनिया भर में ईद-उल-फितर का त्योहार मनाया जाता है। यह त्योहार रोजेदारों के लिए अल्लाह की तरफ से एक इनाम होता है। ईद-उल-फितर इस्लाम में एक खास पर्व है, जिसे रमजान के पूरे महीने रोजे रखने के बाद मनाया जाता है। यह दिन खुशी, इबादत और आपसी भाईचारे का प्रतीक माना जाता है। इस दिन मुसलमान अल्लाह का शुक्र अदा करते हैं कि उन्होंने उन्हें रमजान के रोजे रखने, इबादत करने और अपनी आत्मा को पवित्र करने का अवसर दिया।

इस्लामिक शिक्षाओं के अनुसार, ईद-उल-फितर केवल एक त्योहार नहीं है, बल्कि यह आत्मा की शुद्धि और समाज में प्रेम व सद्भावना को बढ़ाने का जरिया भी है। यह दिन हमें यह सिखाता है कि हमें अल्लाह की नेमतों पर शुक्र अदा करना चाहिए और जरूरतमंदों की मदद करनी चाहिए। ईद की नमाज न केवल एक धार्मिक कर्तव्य है, बल्कि यह मुसलमानों की सामूहिक इबादत और सामाजिक जिम्मेदारी को भी दर्शाती है। इस पावन अवसर पर लोग एक-दूसरे से गले मिलकर खुशी का इजहार करते हैं और भाईचारे का संदेश फैलाते हैं। यह त्योहार हर मुसलमान के लिए अल्लाह की तरफ से एक बड़ा तोहफा है, जो प्रेम, एकता और करुणा का संदेश देता है।
Previous Post Next Post