दिल्ली चुनाव के परिणाम बीजेपी के पक्ष में रहे। आम आदमी पार्टी के हाथ निराशा लगी। वहीं कांग्रेस भले ही सीट का खाता नहीं खोल पाई लेकिन 14 सीटों पर आप को नुकसान पहुंचाया। यदि दोनों पार्टियों में गठबंधन हो जाता तो कहानी कुछ और होती।
- दिल्ली चुनाव में नहीं हो पाया आप और कांग्रेस का गठबंधन
- दिल्ली की 14 सीटों पर कांग्रेस की वजह से हारी 'आप'
- 2013 में आम आदमी पार्टी को 30 फीसदी मत मिले थे
नई दिल्ली: दिल्ली विधानसभा के चुनाव परिणाम में बीजेपी को प्रचंड बहुमत प्राप्त हो गया। वहीं आम आदमी पार्टी की करारी हार हुई, जो पिछले 10 साल से दिल्ली की सत्ता पर काबिज थी। वहीं कांग्रेस के हाथ एक भी सीट नहीं आ पाई। कांग्रेस का सूपड़ा जरूर साफ हो गया, लेकिन 70 सीटों में से 14 सीटें ऐसी रही, जिन पर कांग्रेस के कारण 'आप' को हार का सामना करना पड़ा।
दिल्ली चुनाव के परिणामों पर जम्मू कश्मीर के सीएम उमर अब्दुल्ला ने कांग्रेस और आम आदमी पार्टी पर निशाना साधते हुए कह दिया कि 'और लड़ो आपस में'। इस बयान का यही मतलब निकलता है कि कांग्रेस की वजह से आप की हार में वोटों का मार्जिन बहुत कम रहा।
यदि आप और कांग्रेस में गठबंधन होता तो दिल्ली में दोनों पार्टियों की गठबंधन की सीटें 37 हो सकती थीं, जो बहुमत से एक सीट ज्यादा है। दरअसल, 14 सीटें ऐसी रहीं, जिनमें आप की हार का अंतर कांग्रेस को मिले मतों से कम है।
कांग्रेस के वोटों पर आप का कब्जा
दिल्ली में लंबे समय से बीजेपी और कांग्रेस ही प्रतिस्पर्धी पार्टियां रहीं। कांग्रेस को एंटी बीजेपी और बीजेपी को एंटी कांग्रेस वोट मिलता रहा। लेकिन 2013 में आप के उदय के साथ ही कांग्रेस के वोटों पर आप का कब्जा हो गया।
'आप' का वोट प्रतिशत बढ़ता रहा, कांग्रेस सिमटी
साल 2013 में आम आदमी पार्टी को 30 फीसदी मत मिले थे। साल 2020 में ये बढ़कर 54 प्रतिशत हो गए। वहीं दूसरी ओर कांग्रेस को सासल 2013 में 25 प्रतिशत मत मिले थे, जो 2020 में घटकर 4 प्रतिशत तक ही रह गए। बीजेपी के 35 फीसदी के करीब मत अभी भी बरकरार हैं। इस तरह कांग्रेस और आप अलग अलग लड़ने की वजह से नुकसान में रहे।
राहुल और केजरीवाल क्यों नहीं आए साथ?
लोकसभा चुनाव के बाद 'आप' नेता गोपाल राय और कांग्रेस के दिल्ली प्रदेश अध्यक्ष देवेंद्र यादव ने कहा था कि गठबंधन सिर्फ लोकसभा चुनाव के लिए था, उन्होंने घोषणा की थी कि दिल्ली विधानसभा चुनाव अकेले लड़ेंगे।
विशेषज्ञ बताते हैं कि कांग्रेस 5 से 10 तक सीटें चाहती थीं, लेकिन केजरीवाल ने असहमति जाहिर कर दी। साथ ही स्पष्ट कर दिया कि वे कांग्रेस से चुनावी गठबंधरन नहीं करेंगे। यही नहीं, दोनों पार्टियों के नेताओं ने एकदूसरे पर जमकर आरोप लगाए।
'आप' को मिला ममता और अखिलेश का साथ
अखिलेश यादव दिल्ली आए और आप के पक्ष में चुनाव प्रचार किया। ममता बनर्जी की पार्टी टीएमसी ने भी केजरीवाल का ही साथ दिया। ऐसे में कांग्रेस अकेले पड़ गई। कांग्रेस का इसी वजह से चुनाव प्रचार ठंडा ही रहा।
आम आदमी पार्टी और AIMIM
दिल्ली विधानसभा की दो सीटों पर चुनाव लड़ रही AIMIM ने दोनों सीटों पर तीसरा स्थान हासिल किया। ओखला सीट पर पार्टी प्रत्याशी शिफ़ा उर रहमान खान ने 39,558 (18.88%) वोट प्राप्त किए, जबकि मुस्तफाबाद में उम्मीदवार मो. ताहिर हुसैन को 33,474 (16.64%) वोट मिले और वह अपनी जमानत बचाने में असफल रहे।
मुस्तफाबाद विधानसभा सीट से बीजेपी के मोहन सिंह बिष्ट विजई हुए वहीं ओखला विधानसभा सीट पर आप के अमानतुल्लाह खान ने जीत हासिल की है।
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